अक्सर गेहू पिसवाने की दूकान (आटा चक्की ) पर वो सावला दुबला पतला सा लड़का मुझे दिख जाता था. मेहनत करते हुए कभी अनाज की बोरिया उठाते हुए तो कभी आटा चक्की से आटा निकालते हुए . आटा चक्की वाले काका उसे आवाज लगते "ऐ मद्रास जल्दी कर " मद्रास उसका ये नाम मेरे लिए आश्चर्य का विषय था . एक दिन मैंने हिम्मत कर के उससे पूछ ही लिया " छोटू तुम्हारा नाम क्या है ?" उसने प्रश्नभरी निगाह से देखते हुए उत्तर दिया "मद्रास". मैंने प्यार से फिर पुछा छोटू तुम्हारा असली नाम क्या है ?" उसने वही उत्तर थोड़ी उदासी के साथ दिया "मद्रास". मद्रास ये कैसा नाम रखा भाई तुम्हारे मम्मी पापा ने? उसने रुआंसी आँखों से मेरी तरफ देखा और बोला भैया ये नाम मेरे माँ बाप ने नहीं रखा है ये नाम मुझे बाजार ने दिया है , जिनके माँ बाप नहीं होते है न भैया दुनिया उन्हें ऐसे ही नाम दे देती है . और एक बड़ा भारी बोरा वो सर पर उठा कर चल दिया........
Sunday, December 18, 2011
Wednesday, November 16, 2011
उन्मुक्त
अल्फाजो से एहसासों को बया कर पाना अब मुश्किल है
दुनियादारी में खुद को उलझा पाना अब मुश्किल है
इस पीर का मजा एक पीर ही जाने
रोशनी को अंधेरो से दबा पाना अब मुश्किल है
दुनियादारी में खुद को उलझा पाना अब मुश्किल है
इस पीर का मजा एक पीर ही जाने
रोशनी को अंधेरो से दबा पाना अब मुश्किल है
Thursday, July 21, 2011
मुझे भूल न जाना
उसने पके बालो को कानो के पीछे करते हुए पूछा
"क्या आज भी मुझे याद करते हो ?
मैंने झट कुर्ते कि जेब से एक डिबिया निकाल कर उड़ेल
दी उसके सामने। जिसमे थे कुछ कांच कि चूड़ियों के टुकड़े , एक नीली बिन्दी और
कागज़ की परची जिस पर लिखा था
"मुझे भूल न जाना ।"
"क्या आज भी मुझे याद करते हो ?
मैंने झट कुर्ते कि जेब से एक डिबिया निकाल कर उड़ेल
दी उसके सामने। जिसमे थे कुछ कांच कि चूड़ियों के टुकड़े , एक नीली बिन्दी और
कागज़ की परची जिस पर लिखा था
"मुझे भूल न जाना ।"
Wednesday, June 15, 2011
तन्हा
सिलसिले कुछ इस तरह लगे है तनहाईयों के
कि आएने में जो शख्स दिखता है उसे भी पहचान नहीं पाते है अब तो .
कि आएने में जो शख्स दिखता है उसे भी पहचान नहीं पाते है अब तो .
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