Sunday, April 26, 2015

अरे जरा सुनो




कभी कभी तुम (आप लिखने का मन नहीं किया) मुझे किसी स्कूल की नर्सरी की टीचर सी लगती हो. जिसकी क्लास में ये नन्हे नन्हे , रंग बिरंगे शब्द दिन भर धमा चोकड़ी मचाते रहते है. तुम भी दिन भर इन्हें अपनी मनमानी करने देती हो पर दिन ख़त्म होने के पहले टेबल के नीचे से तुम निकाल लेती हो एक छड़ी और झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए इन शब्दों को बोलती हो "चलो बैठो एक लाइन में नहीं तो पिटाई कर देंगे तुम्हारी" ये मासूम जानते है की तुम इनकी पिटाई कर ही नहीं सकती फिर भी तुम्हारे झूठ मूठ के गुस्से के पीछे छिपे प्यार की खातिर ये नन्हे शैतान एक कतार में बैठ कर गाने लगते है कोई प्रार्थना जिसके सारे बोल भी इन्हें नहीं पता/ उसमे से भी कुछ मस्तीखोर एक आँख खोल कर आसपास का मुआइना  करने लगते है. तुम उस प्रार्थना की धुन में रच देती हो कोई नया गीत , कहानी या कविता इन  शब्दों की मासूमियत  बरकरार रखते हुए. तुम्हारे लिखे ये मस्तीखोर कुछ कुछ तुम्हारे जैसे ही है शायद. इन मासूम शब्दों को हज़ार दुआए.