प्रवाह
Saturday, May 8, 2010
पीड़ा
कुछ बाते कुछ मुलाकाते जो हमारे तुम्हारे बीच हो न सकी ,
काटी मैंने तुम्हारी चिट्ठियों के संग कितनी राते, तुम भी वहा ठीक से सो न सकी.
बहते रहे झरने मेरी आँखों से यहाँ हरदम
पर तुम दुनिया के डर से खुल कर रो भी न सकी.
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