वो टेबल पर रखे टिशु पेपर को एक टक देख रही थी . "अनन्या ,अनन्या कहाँ खो गई ?" मैंने उसे टोकते हुए पूछा . उसने बड़ी विवशता वाली दृष्टि से देखते हुए कहा " विशाल ये संभव नहीं है ""क्यों संभव नहीं है , समस्या क्या है ?" मुझे एक बड़ी कंपनी में जॉब मिल गया है और तुम्हे भी उसी शहर में इतना अच्छा जॉब मिल गया है . मै इसी दिन का तो इंतज़ार कर रहा था की तुम अपना सपना पूरा कर लो तो शादी की बात करें।"मैंने थोडा उत्तेजित होते हुए पुछा। अनन्या ने धीरे से पानी का गिलास मेरी और सरकाते हुए कहा "विशाल हम आज यहाँ मेरी जॉब लगाने की ख़ुशी में पार्टी करने आए है न कि डेट पर।"उसने हँसाने की कोशिश करते हुए कहा। अनन्या अक्सर गंभीर मुद्दों को बदलने के लिए ऐसे ही बात बदल देती थी।पर आज उसे इस बात को बदलने में कुछ ज्यादा दिक्कत आ रही थी।"अनु बात मत बदलो तुम जानती हो ये मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण है।"" और जो निर्णय लेना है वो मेरे लिए जीने मरने जैसा है।" "विशाल तुम जैसे लडके को कोई भी अच्छी लड़की मिल जायेगी, मुझसे भी अच्छी।" मुझे कोई भी अच्छी लड़की नहीं चाहिए अनन्या ,मुझे सिर्फ और सिर्फ अनन्या त्रिपाठी से ही शादी करनी है। मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था और कान भी शायद लाल हो गए थे, क्योंकि कान पर मुझे गर्मी का एहसास हो रहा था। "अनु ये अभिनय क्यों ?""मै नहीं जानता कि तुम इतना कठोर क्यों हो गई हो ?"लेकिन मेरे लिए यह डिस्टर्बिंग है , क्यों अनु क्यों?"" विशाल मैंने हमारी पहली मुलाकात में ही साफ़ कर दिया था की हम अच्छे दोस्त बनकर ही रहेंगे , सिर्फ अच्छे दोस्त उससे आगे नहीं।अब स्थिति सामान्य नहीं थी मैंने सोचा नहीं था की अनन्या का ये रिएक्शन होगा। मेरे कहने के पहले हर बात को जान लेने वाली अनन्या आज बात को समझ नहीं रही थी।"इनफ अनु इनफ क्या हम अच्छे दोस्त ज़िन्दगी भर के लिए एक दुसरे के नहीं हो सकते ?""तुम जानती हो तुम मेरे लिए जीवन की ऊर्जा हो, लक्ष्य हो।" मेरे भीतर कुछ टूट सा रहा था और सबकुछ आउट ऑफ़ कण्ट्रोल हो रहा था। तुम कहती हो कोई भी अच्छी लड़की मिल जायेगी यार अनु तुम मेरे लिए बेस्ट मैच हो।" "तुम विशिष्ट हो मेरे लिए ,तुम्हारी जगह कोई और ले नहीं सकता। कोई और लड़की मिल जायेगी यह कहना आसान है तुम्हारे लिए इसका मतलब समझती हो तुम?" अनजाने में मेरी आवाज़ काफी ऊची हो गई थी और अनु को ये अच्छा नहीं लग रहा था।
"समझती हु विशाल पर शायद तुम नहीं समझते की लड़की होना क्या होता है और वो भी तीसरी लड़की?" तीसरी लड़की इस संबोधन का प्रयोग आज तक अनु ने अपने लिए नहीं किया था। मै जानता था की अनु की दो बड़ी बहने और एक छोटा भाई था।पर तीसरी लड़की इस संबोधन में बहुत कुछ छिपा हुआ था जो अनु के बोलने से परत दर परत खुलने लगा "मासी बताती है , माँ पेट से थी वसुंधरा दीदी और निष्ठां दीदी के बाद घर में तीसरे मेहमान के आने की तैयारी थी सभी लोगो को विश्वास था की इस बार नन्हा मेहमान लड़का ही होगा। पास के शिव मंदिर के पुजारी के कहने पर माँ ने सात सोमवार के व्रत भी किये थे।दादी ने माँ को जाने कितनी बार पूजा पाठ करते हुए कहा था " सुषमा अबकी बार निराश न करना , मुझे इस घर का कुलदीपक देखना है ताकि मै शान्ति से इस लोक से विदा ले सकू। "मासी बताती है की माँ को उस समय प्रसव पीड़ा कम और भय अधिक था की कही इस बार भी लड़की न हो जाए।दादी नन्हे कन्हेंया की आस में लगातार भजन कर रही थी "गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो".नानी माँ को ढाढस बंधा रही थी "चिंता मत कर सुषमा अबके तो लड़का ही होगा मैंने सपने में लड्डू गोपाल के दर्शन किये है।" सब विश्वास जाता रहे थे या कहना चहिये अपने भीतर के डर को दबा रहे थे की लड़का ही होगा। और आखिरी घर में बच्चे के रोने की आवाज गूंज उठी। सभी लोग भय और उत्सुकता से का इंतज़ार कर रहे थे। "दाई आकर बोली बधाई हो अम्मा जी घर में लक्ष्मी आई है।" दादी को काटो तो खून नहीं , इश्वर से नाराज होकर दादी बोली है ठाकुर साब ये कैसा अन्याय है, मेरे बेटे के ऊपर ऊपर दो बोझ क्या कम थे जो तीसरी भी लड़की भेज दी। "
माँ ने होश आने पर मासी की तरफ प्रश्न भरी निगाह से देखा , मासी के उतरे हुए चहरे और पानी भरी आँखों को देख कर माँ के भी आंसू बह निकले। मासी ने माँ के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा " निराश मत हो सुषमा "
मासी के स्पर्श ने माँ के भीतर का बाँध तोड़ दिया और माँ की आँखों से आंसुओ का सैलाब निकल पड़ा। मेरे जन्म ने माँ को कमजोर बना दिया था और एक गहरी उदासी उनके भीतर बैठ गई थी। जब मनुष्य अन्दर से दुखी हो तो लक्षण शरीर पर दिखने लगते है।
माँ की कमजोरी के कारण मेरी देखरेख का जिम्मा वसु दी के ऊपर आ गया था और सात साल की वो लड़की अचानक काफी बड़ी होकर मेरी जिम्मेदारी संभालने लगी। बच्चो की देखरेख के संस्कार हम लडकियों को शायद जन्म से ही मिल जाते है। पिताजी को पोस्ट ऑफिस में बाबु बना दिया गया था और तनख्वाह में 500 रुपये की बढोतरी भी मिली थी। पिताजी मिठाई लेकर घर पहुचे और दादी के पैर छुते हुए बोले " अम्मा सचमुच हमारे घर में लक्ष्मी आई है , देखो इसके आने के बाद सरकार ने मुझे नौकरी में तरक्की और और तनख्वाह में बढोतरी दी है।" दादी खाट पर बैठे बैठे सुपारी काटते हुए बोली "गुड्डू ये पैसे संभाल कर रख , इस लक्ष्मी को विदा करने के लिए देने पड़ेंगे। लड़की नाम पराया धन।" " इतना खुश मत हो गुड्डू।" "क्या अम्मा तुम भी इस बेचारी को कोसती रहती हो।" पिताजी ने दादी को समझाते हुए कहा। " अरे इसे कंहा कोसती हु, कोसती हु अपनी किस्मत को की ठाकुर जी ने पोते का मुह दिखाने के बदले भेज दी तीन तीन लडकिया। " एक लड़का भेज देते तो तुझे भी सहारा होता और बुडापे की चिंता न होती।" पिताजी चुपचाप कंधे झुकाकर कमरे की और चल दिए।
धीरे धीरे हम तीनो बहने बड़ी होने लगी और हमारे बड़े होने के साथ साथ घर के खर्चे भी बड़े होने लगे। पिताजी की तनख्वाह से घर में मुश्कील से गुजारा होता था। वसु दी ने बच्चो को टूशन पढाना शुरू कर दिया और घर खर्च में मदद करने लगी।वसु दी ने आठवी की परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया तो मास्टर जी खुद मिठाई लेकर घर आये। पिताजी बाहर की बैठक में अखबार पढ़ रहे थे तभी मास्टर जी ने कहा " बधाई हो भाई साहब अपनी वसु ने हमारे विद्यालय और त्रिपाठी परिवार का नाम रोशन कर दिया . पूरे जिले में अव्वल आई है अपनी वसु।" पिताजी ने आभार प्रकट करते हुए कहा " सब आपके मार्गदर्शन का परिणाम है मास्टरजी।" " नहीं भाई साहब ये तो वासु की इच्छाशक्ति और मेहनत है जिसने आज हमारा सर गर्व से ऊचा कर दिया है। पांच साल बाद हमारे शासकीय विद्यालय से कोई अव्वल आया है।" वसु दी ने मास्टरजी और पिताजी के पैर छुए और आशीर्वाद लिया। भाई साब अब वसु को नवी कक्षा के लिए प्रवेश चौक के स्कूल में करवा देना। " वहा की पढ़ाई अपने गोविंदपुर के विद्यालय से अच्छी है।" यहाँ तो नवी की कक्षाए लगाती ही नहीं है , सिर्फ कन्या विद्यालय होने से एक तो बहुत सी लडकिया काम काज के चले आती नहीं है और जो थोड़ी बहुत आती है वो शिक्षिकाओं का निजी काम कराती रहती है।" " जी मास्टरजी लेकिन चौक का स्कूल तो वसु को काफी दूर पड़ेगा और वहा की फीस"कहते कहते पिताजी मज़बूरी के बादलो में गुम से हो गए।" भाई साब फीस की चिंता आप न करे, जिले में अव्वल आने वाले विद्यार्थी को चौक के स्कूल में शिक्षण शुल्क नहीं लगता और रही बात घर से दुरी की तो इस बार कलेक्टर मैडम ने 26 जनवरी के मीटिंग में कहा था मास्टरजी इस बार अगर कोई लड़की कन्या विद्यालय से मेरिट में आये तो उसे प्रोत्साहन के तौर पर कोई इनाम जरुर देंगे। तो हम वसु बिटिया के लिए कलेक्टर साहिबा से साइकिल की बात कर लेंगे। मास्टरजी ने उत्साह के साथ अपनी बात खत्म करते हुए कहा। "मास्टरजी आपका बहुत आभार होगा।" पिताजी ने दोनों हाथ जोड़कर मास्टरजी से कहा। मास्टरजी ने पिताजी के हाथ पकड़ कर कहा नहीं भाई साब ये तो इस बालिका की मेहनत है।" " माँ सरस्वती की कृपा है आपकी बिटिया पर।" इतना कह कर मास्टरजी चले गए।
शाम का समय था घर में आज ख़ुशी का माहोल था। वसु दी के परीक्षा परिणाम की ख़ुशी में माँ आज खीर बना रही थी और उसमे डाली गई इलायची की खुशबू से सारा घर महक रहा था। न जाने कितने सालो बाद माँ खुश नज़र आ रही थी। पिताजी खाना खाते हुए माँ से बोले "वसु की माँ अब हमारी वसु बिटिया चौक के स्कूल में पढ़ने जायेगी।""कलेक्टर साहिबा ने साइकिल के लिए मास्टरजी को चेक भी दे दिया है।""वसु दी हमारे गोविंदपुर से पहली लड़की होगी जो चौक के स्कूल में पढ़ने जायेगी।"निष्ठां दी चहकते हुए बोली। तभी दादी ने टेढ़ी भोए करते हुए कहा "गुड्डू जवान बेटी को छोरो (लड़को) के साथ पढ़ने भेजेगा कुछ ऊच नीच हो गई तो?" "अम्मा तुम भी न, कही कोई उच नीच नहीं होगी, हमारी वसु सयानी है।" पहली बार पिताजी ने दादी की बात को सिरे से नाकारा था इससे अम्मा तिलमिला उठी और रसोईघर से बडबडाते हुए बाहर निकल गई "लड़की की जात और ऊपर से छोरो का साथ भगवान बचाए।" काफी न नुकुर के बाद दादी ने वसु को चौक के स्कूल में जाने की इजाजत दी।
इसी साल हमारे घर में चौथे मेहमान के आने की तैयारी थी। दादी सुबह सुबह जल्दी उठकर रसोईघर में कुछ पका रही थी। देशी घी की फ़ैली हुए खुशबू बता रही थी की कुछ लज़ीज़ मीठा बन रहा है। माँ पीने का पानी भरकर लौटी तो दादी ने कहा "सुषमा थोडा सुस्ता ले बेटा और ये बादाम का हलवा खा ले, तुझे ताकत की जरुरत है।"माँ दादी के हाथ से तश्तरी लेकर इधर उधर देखने लगी तो दादी बोली" सुषमा ये तेरे लिए है तू खा ले, छोटी के लिए मैंने अलग से कटोरी में निकाल कर रखा है।"दादी कटोरी लेकर मेरे पास आई और बोली अनु ए अनु क्या कर रही है?" और सर पर हाथ फेरते हुए मुझे गोदी में बैठा कर बोली ये ले अनु बादाम का हलवा खा ले ." ये पहली बार था जब दादी ने मुझे नाम से पुकारा था।इससे पहले तो उनके मुह से हमेश छोटी या तीसरी ही सुनने को मिलता था। हलवा खिलाते हुए दादी बोली "अनु ठाकुर जी से प्रार्थना करना की मुझको जल्दी से एक भाई दे दो।" भगवान बच्चो की बात जल्दी मानते है शायद एसा सोचकर ही दादी मुझसे कह रही थी।
फरवरी की ठण्ड में हमारे यहाँ कुलदीप का जन्म हुआ। पोते को पाकर दादी के आँखों में चमक आ गयी थी और एसा लगता था जैसे जीने का कोई बहाना मिल गया हो।कुलदीप के जन्म ने उनमे एक नवीन ऊर्जा भर दी थी।दादी अधिकतर समय कुलदीप की देखरेख में ही बिताती थी। इधर ये समय परीक्षा का था तो वसु दी के ऊपर पढ़ाई के साथ साथ घर संभालने की जिम्मेदारी बढ़ गई थी। निष्ठा दी जो कभी इधर का लौटा उधर उठा कर नहीं रखती थी ने वसु दी का हाथ बटाना शुरू कर दिया।निष्ठां दी के इस परिवर्तन को देख घर में सभी हैरान थे।दादी कुलदीप को एक पल के लिए अपनी आँखों से दूर नहीं होने देती थी। इच्छाए अगर देरी से पूरी होती हो तो आकर्षण अधिक समय तक बना रहता है।
एक साल बाद माँ कुलदीप को लेकर नानी के यहाँ मकर संक्रांति मनाने के लिए गई थी। यह पहला मौका था जब दादी कुलदीप से दूर हुई थी। इस विरह ने दादी को ज्वर की चपेट में ला दिया। बुखार ऐसा चढ़ा की तीन दिन तक उतरने का नाम ही नहीं लिया चौथे दिन दादी को थोड़ी राहत हुई। दादी फिर भी दर्द से कराह रही थी। मै दादी के पास बैठ उनके पैर दबा रही थी। तभी दादी बोली "अनु बस कर बेटा थक गई होगी" दादी के मुह से इतने प्यार के साथ बेटा सुनकर मेरा मन भर आया और मै दादी से गले लग कर जोर से रोने लगी। दादी की भी आँख भर आई और वो बोली छोटी रोती क्यों है?"मैं नहीं मरने वाली इतनी जल्दी, कुलदीप का ब्याह करके ही जाउंगी में इस संसार से।"निष्ठां दीदी जो दादी की दवाई और पानी लेकर आई थी तुनक कर बोली " जो यहाँ बैठ कर इतनी सेवा कर रहा है उसकी कोई इज्जत नहीं और जो एक साल का भी नहीं हुआ है उसकी शादी के सपने देखे जा रहे है।" निष्ठां दी और दादी के मध्य शब्दों का शीत युद्ध चलता रहता था। " तू नहीं समझेगी निष्ठां , लडकियों से आस नहीं लगाते वो पराया धन होती है।" यह सुनकर निष्ठां दी भड़क गई और बोली " अम्मा लड़की होना पाप है क्या जो उसके अपने भी उसे पराया धन कहते है और दुसरे घर का पता नहीं वह प्यार मिले न मिले।" निष्ठां दी का गुस्सा उनकी आँखों से आंसू बन बह निकला। दादी कुछ देर चुप रही और फिर बोली "निष्ठां आ इधर बैठ और सुन हम तीन बहने थी, अनीता जीजी सबसे बड़ी, कामना जीजी दुसरे नंबर की और में तीसरी।दादी का स्वर धीमा और गभीर हो गया और आँखे अतीत में झाकने लगी। " बेटा न होने पर माँ को घर में और समाज में हमेशा तिरस्कृत होना पड़ा और वो मन ही मन घुटती रहती। निष्ठा दी आंसू पोंछकर दादी की बात ध्यान से सुनने लगी। अनीता जीजी का रिश्ता बड़े घर में तय हुआ था पिताजी ने शादी में हैसियत से ज्यादा खर्च किया था और दहेज़ के लिए पुरानी कोठी गिरवी रख दी थी। जीजी की शादी के बाद उनके ससुराल वालो की मांग बढ़ती गई और एक दिन जीजी ने विवश होकर जहर पी लिया। शायद वो पिताजी की इतनी ही मदद कर सकती थी। अनीता जीजी की आत्महत्या और पिताजी की बिगड़ी माली हालत के कारण कामना जीजी के लिए अच्छा रिश्ता ढूंढ़ पाना मुश्किल हो गया था। बड़ी मुश्किल से गाँव के एक पुजारी के यहाँ रिश्ता पक्का हुआ। लड़का पंडिताई भी करता था और भेंसो का व्यापार भी करता था। कामना जीजी बारहवी पास थी उनके हिसाब से ये रिश्ता बिलकुल उपयुक्त नहीं था पर पिताजी को मजबूर देख कर उन्होंने शादी के लिए हां कर दी। शादी के बाद कामना जीजी ऐसी गई की आज तक मायके का मुह भी नहीं देखा। वो पिताजी से ज्यादा नाराज थी या खुद के लड़की होने पर नाराज थी मैं आज भी यह जान नहीं पाई।
इधर माँ की तबियत बिगड़ गई और वो परलोक सिधार गई। मैं जो तीसरी लड़की थी पिताजी के लिए भोझ सा बन गई। दिन रात उन्हें मेरी शादी की चिंता सताती रहती। एक दिन तुम्हारे दादाजी कचहरी के कुछ काम से आये और पिताजी के मन को भा गए। तेरह साल की उम्र में ही मेरा ब्याह कर दिया गया औत पिताजी स्वर्ग सिधार गए। शायद मेरे ब्याह की चिंता से उनके प्राण उस जर्जर हुए शरीर में टिके हुए थे। कहते कहते दादी का गला भर आया और वो बोली " इसलिए मेरी बच्चियों मुझे लड़की होने का एहसास है।" "दुनिया ऊपर से चाहे कितनी भी बदल जाए पर लडकियों के लिए इसका रवेया कभी नहीं बदला है।"कहते कहते उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े मैंने पहली बार दादी को रोते देखा था। मैं और निष्ठां दीदी भी उनके गले लग कर रोने लगे। निष्ठा दी के मन में जो दादी के लिए गुस्सा था वो सब आज आंसुओ से धुल गया था।"
इतना कह कर अनन्या रुक गई वो खुद नहीं जानती थी की यह कहानी सुनाते सुनाते वो तीन बार रो चुकी है। जैसे ही उसे उसकी आँखे भीगी होने का एहसास हुआ , उसने झट से आंसू पोंछ दिए और बोली" विशाल तुम नहीं समझ पाओगे की लड़की होना क्या है?" जन्म से ही हमारे ऊपर मर्यादा और समझोते की विवशता लाद दी जाती है।" " फिर भी लडकियाँ हसते हसते कभी माँ बन, कभी पत्नी बन, कभी बेटी बन समझोते करते करते जिंदगी जीते चली जाती है।" तुम कभी नहीं समझ सकोगे विशाल की लड़की होना क्या है।" इतना कहकर अनन्या रेस्टोरेंट से बाहर चली गई और मै बैठे बैठे सोच रहा था की वह सही कह रही है हम पुरुष कभी समझ नहीं पायेंगे की लड़की होने क्या है।
आज चार साल बाद मेरे घर में एक लड़की का जन्म हुआ है और इसका नाम मैंने अनन्या ही रखा है। उस अनन्या से तो उस दिन के बाद मिलने की हिम्मत न कर सका पर इस अनन्या को बिना समझोते वाला जीवन देने का वचन देता हु।
"समझती हु विशाल पर शायद तुम नहीं समझते की लड़की होना क्या होता है और वो भी तीसरी लड़की?" तीसरी लड़की इस संबोधन का प्रयोग आज तक अनु ने अपने लिए नहीं किया था। मै जानता था की अनु की दो बड़ी बहने और एक छोटा भाई था।पर तीसरी लड़की इस संबोधन में बहुत कुछ छिपा हुआ था जो अनु के बोलने से परत दर परत खुलने लगा "मासी बताती है , माँ पेट से थी वसुंधरा दीदी और निष्ठां दीदी के बाद घर में तीसरे मेहमान के आने की तैयारी थी सभी लोगो को विश्वास था की इस बार नन्हा मेहमान लड़का ही होगा। पास के शिव मंदिर के पुजारी के कहने पर माँ ने सात सोमवार के व्रत भी किये थे।दादी ने माँ को जाने कितनी बार पूजा पाठ करते हुए कहा था " सुषमा अबकी बार निराश न करना , मुझे इस घर का कुलदीपक देखना है ताकि मै शान्ति से इस लोक से विदा ले सकू। "मासी बताती है की माँ को उस समय प्रसव पीड़ा कम और भय अधिक था की कही इस बार भी लड़की न हो जाए।दादी नन्हे कन्हेंया की आस में लगातार भजन कर रही थी "गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो".नानी माँ को ढाढस बंधा रही थी "चिंता मत कर सुषमा अबके तो लड़का ही होगा मैंने सपने में लड्डू गोपाल के दर्शन किये है।" सब विश्वास जाता रहे थे या कहना चहिये अपने भीतर के डर को दबा रहे थे की लड़का ही होगा। और आखिरी घर में बच्चे के रोने की आवाज गूंज उठी। सभी लोग भय और उत्सुकता से का इंतज़ार कर रहे थे। "दाई आकर बोली बधाई हो अम्मा जी घर में लक्ष्मी आई है।" दादी को काटो तो खून नहीं , इश्वर से नाराज होकर दादी बोली है ठाकुर साब ये कैसा अन्याय है, मेरे बेटे के ऊपर ऊपर दो बोझ क्या कम थे जो तीसरी भी लड़की भेज दी। "
माँ ने होश आने पर मासी की तरफ प्रश्न भरी निगाह से देखा , मासी के उतरे हुए चहरे और पानी भरी आँखों को देख कर माँ के भी आंसू बह निकले। मासी ने माँ के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा " निराश मत हो सुषमा "
मासी के स्पर्श ने माँ के भीतर का बाँध तोड़ दिया और माँ की आँखों से आंसुओ का सैलाब निकल पड़ा। मेरे जन्म ने माँ को कमजोर बना दिया था और एक गहरी उदासी उनके भीतर बैठ गई थी। जब मनुष्य अन्दर से दुखी हो तो लक्षण शरीर पर दिखने लगते है।
माँ की कमजोरी के कारण मेरी देखरेख का जिम्मा वसु दी के ऊपर आ गया था और सात साल की वो लड़की अचानक काफी बड़ी होकर मेरी जिम्मेदारी संभालने लगी। बच्चो की देखरेख के संस्कार हम लडकियों को शायद जन्म से ही मिल जाते है। पिताजी को पोस्ट ऑफिस में बाबु बना दिया गया था और तनख्वाह में 500 रुपये की बढोतरी भी मिली थी। पिताजी मिठाई लेकर घर पहुचे और दादी के पैर छुते हुए बोले " अम्मा सचमुच हमारे घर में लक्ष्मी आई है , देखो इसके आने के बाद सरकार ने मुझे नौकरी में तरक्की और और तनख्वाह में बढोतरी दी है।" दादी खाट पर बैठे बैठे सुपारी काटते हुए बोली "गुड्डू ये पैसे संभाल कर रख , इस लक्ष्मी को विदा करने के लिए देने पड़ेंगे। लड़की नाम पराया धन।" " इतना खुश मत हो गुड्डू।" "क्या अम्मा तुम भी इस बेचारी को कोसती रहती हो।" पिताजी ने दादी को समझाते हुए कहा। " अरे इसे कंहा कोसती हु, कोसती हु अपनी किस्मत को की ठाकुर जी ने पोते का मुह दिखाने के बदले भेज दी तीन तीन लडकिया। " एक लड़का भेज देते तो तुझे भी सहारा होता और बुडापे की चिंता न होती।" पिताजी चुपचाप कंधे झुकाकर कमरे की और चल दिए।
धीरे धीरे हम तीनो बहने बड़ी होने लगी और हमारे बड़े होने के साथ साथ घर के खर्चे भी बड़े होने लगे। पिताजी की तनख्वाह से घर में मुश्कील से गुजारा होता था। वसु दी ने बच्चो को टूशन पढाना शुरू कर दिया और घर खर्च में मदद करने लगी।वसु दी ने आठवी की परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया तो मास्टर जी खुद मिठाई लेकर घर आये। पिताजी बाहर की बैठक में अखबार पढ़ रहे थे तभी मास्टर जी ने कहा " बधाई हो भाई साहब अपनी वसु ने हमारे विद्यालय और त्रिपाठी परिवार का नाम रोशन कर दिया . पूरे जिले में अव्वल आई है अपनी वसु।" पिताजी ने आभार प्रकट करते हुए कहा " सब आपके मार्गदर्शन का परिणाम है मास्टरजी।" " नहीं भाई साहब ये तो वासु की इच्छाशक्ति और मेहनत है जिसने आज हमारा सर गर्व से ऊचा कर दिया है। पांच साल बाद हमारे शासकीय विद्यालय से कोई अव्वल आया है।" वसु दी ने मास्टरजी और पिताजी के पैर छुए और आशीर्वाद लिया। भाई साब अब वसु को नवी कक्षा के लिए प्रवेश चौक के स्कूल में करवा देना। " वहा की पढ़ाई अपने गोविंदपुर के विद्यालय से अच्छी है।" यहाँ तो नवी की कक्षाए लगाती ही नहीं है , सिर्फ कन्या विद्यालय होने से एक तो बहुत सी लडकिया काम काज के चले आती नहीं है और जो थोड़ी बहुत आती है वो शिक्षिकाओं का निजी काम कराती रहती है।" " जी मास्टरजी लेकिन चौक का स्कूल तो वसु को काफी दूर पड़ेगा और वहा की फीस"कहते कहते पिताजी मज़बूरी के बादलो में गुम से हो गए।" भाई साब फीस की चिंता आप न करे, जिले में अव्वल आने वाले विद्यार्थी को चौक के स्कूल में शिक्षण शुल्क नहीं लगता और रही बात घर से दुरी की तो इस बार कलेक्टर मैडम ने 26 जनवरी के मीटिंग में कहा था मास्टरजी इस बार अगर कोई लड़की कन्या विद्यालय से मेरिट में आये तो उसे प्रोत्साहन के तौर पर कोई इनाम जरुर देंगे। तो हम वसु बिटिया के लिए कलेक्टर साहिबा से साइकिल की बात कर लेंगे। मास्टरजी ने उत्साह के साथ अपनी बात खत्म करते हुए कहा। "मास्टरजी आपका बहुत आभार होगा।" पिताजी ने दोनों हाथ जोड़कर मास्टरजी से कहा। मास्टरजी ने पिताजी के हाथ पकड़ कर कहा नहीं भाई साब ये तो इस बालिका की मेहनत है।" " माँ सरस्वती की कृपा है आपकी बिटिया पर।" इतना कह कर मास्टरजी चले गए।
शाम का समय था घर में आज ख़ुशी का माहोल था। वसु दी के परीक्षा परिणाम की ख़ुशी में माँ आज खीर बना रही थी और उसमे डाली गई इलायची की खुशबू से सारा घर महक रहा था। न जाने कितने सालो बाद माँ खुश नज़र आ रही थी। पिताजी खाना खाते हुए माँ से बोले "वसु की माँ अब हमारी वसु बिटिया चौक के स्कूल में पढ़ने जायेगी।""कलेक्टर साहिबा ने साइकिल के लिए मास्टरजी को चेक भी दे दिया है।""वसु दी हमारे गोविंदपुर से पहली लड़की होगी जो चौक के स्कूल में पढ़ने जायेगी।"निष्ठां दी चहकते हुए बोली। तभी दादी ने टेढ़ी भोए करते हुए कहा "गुड्डू जवान बेटी को छोरो (लड़को) के साथ पढ़ने भेजेगा कुछ ऊच नीच हो गई तो?" "अम्मा तुम भी न, कही कोई उच नीच नहीं होगी, हमारी वसु सयानी है।" पहली बार पिताजी ने दादी की बात को सिरे से नाकारा था इससे अम्मा तिलमिला उठी और रसोईघर से बडबडाते हुए बाहर निकल गई "लड़की की जात और ऊपर से छोरो का साथ भगवान बचाए।" काफी न नुकुर के बाद दादी ने वसु को चौक के स्कूल में जाने की इजाजत दी।
इसी साल हमारे घर में चौथे मेहमान के आने की तैयारी थी। दादी सुबह सुबह जल्दी उठकर रसोईघर में कुछ पका रही थी। देशी घी की फ़ैली हुए खुशबू बता रही थी की कुछ लज़ीज़ मीठा बन रहा है। माँ पीने का पानी भरकर लौटी तो दादी ने कहा "सुषमा थोडा सुस्ता ले बेटा और ये बादाम का हलवा खा ले, तुझे ताकत की जरुरत है।"माँ दादी के हाथ से तश्तरी लेकर इधर उधर देखने लगी तो दादी बोली" सुषमा ये तेरे लिए है तू खा ले, छोटी के लिए मैंने अलग से कटोरी में निकाल कर रखा है।"दादी कटोरी लेकर मेरे पास आई और बोली अनु ए अनु क्या कर रही है?" और सर पर हाथ फेरते हुए मुझे गोदी में बैठा कर बोली ये ले अनु बादाम का हलवा खा ले ." ये पहली बार था जब दादी ने मुझे नाम से पुकारा था।इससे पहले तो उनके मुह से हमेश छोटी या तीसरी ही सुनने को मिलता था। हलवा खिलाते हुए दादी बोली "अनु ठाकुर जी से प्रार्थना करना की मुझको जल्दी से एक भाई दे दो।" भगवान बच्चो की बात जल्दी मानते है शायद एसा सोचकर ही दादी मुझसे कह रही थी।
फरवरी की ठण्ड में हमारे यहाँ कुलदीप का जन्म हुआ। पोते को पाकर दादी के आँखों में चमक आ गयी थी और एसा लगता था जैसे जीने का कोई बहाना मिल गया हो।कुलदीप के जन्म ने उनमे एक नवीन ऊर्जा भर दी थी।दादी अधिकतर समय कुलदीप की देखरेख में ही बिताती थी। इधर ये समय परीक्षा का था तो वसु दी के ऊपर पढ़ाई के साथ साथ घर संभालने की जिम्मेदारी बढ़ गई थी। निष्ठा दी जो कभी इधर का लौटा उधर उठा कर नहीं रखती थी ने वसु दी का हाथ बटाना शुरू कर दिया।निष्ठां दी के इस परिवर्तन को देख घर में सभी हैरान थे।दादी कुलदीप को एक पल के लिए अपनी आँखों से दूर नहीं होने देती थी। इच्छाए अगर देरी से पूरी होती हो तो आकर्षण अधिक समय तक बना रहता है।
एक साल बाद माँ कुलदीप को लेकर नानी के यहाँ मकर संक्रांति मनाने के लिए गई थी। यह पहला मौका था जब दादी कुलदीप से दूर हुई थी। इस विरह ने दादी को ज्वर की चपेट में ला दिया। बुखार ऐसा चढ़ा की तीन दिन तक उतरने का नाम ही नहीं लिया चौथे दिन दादी को थोड़ी राहत हुई। दादी फिर भी दर्द से कराह रही थी। मै दादी के पास बैठ उनके पैर दबा रही थी। तभी दादी बोली "अनु बस कर बेटा थक गई होगी" दादी के मुह से इतने प्यार के साथ बेटा सुनकर मेरा मन भर आया और मै दादी से गले लग कर जोर से रोने लगी। दादी की भी आँख भर आई और वो बोली छोटी रोती क्यों है?"मैं नहीं मरने वाली इतनी जल्दी, कुलदीप का ब्याह करके ही जाउंगी में इस संसार से।"निष्ठां दीदी जो दादी की दवाई और पानी लेकर आई थी तुनक कर बोली " जो यहाँ बैठ कर इतनी सेवा कर रहा है उसकी कोई इज्जत नहीं और जो एक साल का भी नहीं हुआ है उसकी शादी के सपने देखे जा रहे है।" निष्ठां दी और दादी के मध्य शब्दों का शीत युद्ध चलता रहता था। " तू नहीं समझेगी निष्ठां , लडकियों से आस नहीं लगाते वो पराया धन होती है।" यह सुनकर निष्ठां दी भड़क गई और बोली " अम्मा लड़की होना पाप है क्या जो उसके अपने भी उसे पराया धन कहते है और दुसरे घर का पता नहीं वह प्यार मिले न मिले।" निष्ठां दी का गुस्सा उनकी आँखों से आंसू बन बह निकला। दादी कुछ देर चुप रही और फिर बोली "निष्ठां आ इधर बैठ और सुन हम तीन बहने थी, अनीता जीजी सबसे बड़ी, कामना जीजी दुसरे नंबर की और में तीसरी।दादी का स्वर धीमा और गभीर हो गया और आँखे अतीत में झाकने लगी। " बेटा न होने पर माँ को घर में और समाज में हमेशा तिरस्कृत होना पड़ा और वो मन ही मन घुटती रहती। निष्ठा दी आंसू पोंछकर दादी की बात ध्यान से सुनने लगी। अनीता जीजी का रिश्ता बड़े घर में तय हुआ था पिताजी ने शादी में हैसियत से ज्यादा खर्च किया था और दहेज़ के लिए पुरानी कोठी गिरवी रख दी थी। जीजी की शादी के बाद उनके ससुराल वालो की मांग बढ़ती गई और एक दिन जीजी ने विवश होकर जहर पी लिया। शायद वो पिताजी की इतनी ही मदद कर सकती थी। अनीता जीजी की आत्महत्या और पिताजी की बिगड़ी माली हालत के कारण कामना जीजी के लिए अच्छा रिश्ता ढूंढ़ पाना मुश्किल हो गया था। बड़ी मुश्किल से गाँव के एक पुजारी के यहाँ रिश्ता पक्का हुआ। लड़का पंडिताई भी करता था और भेंसो का व्यापार भी करता था। कामना जीजी बारहवी पास थी उनके हिसाब से ये रिश्ता बिलकुल उपयुक्त नहीं था पर पिताजी को मजबूर देख कर उन्होंने शादी के लिए हां कर दी। शादी के बाद कामना जीजी ऐसी गई की आज तक मायके का मुह भी नहीं देखा। वो पिताजी से ज्यादा नाराज थी या खुद के लड़की होने पर नाराज थी मैं आज भी यह जान नहीं पाई।
इधर माँ की तबियत बिगड़ गई और वो परलोक सिधार गई। मैं जो तीसरी लड़की थी पिताजी के लिए भोझ सा बन गई। दिन रात उन्हें मेरी शादी की चिंता सताती रहती। एक दिन तुम्हारे दादाजी कचहरी के कुछ काम से आये और पिताजी के मन को भा गए। तेरह साल की उम्र में ही मेरा ब्याह कर दिया गया औत पिताजी स्वर्ग सिधार गए। शायद मेरे ब्याह की चिंता से उनके प्राण उस जर्जर हुए शरीर में टिके हुए थे। कहते कहते दादी का गला भर आया और वो बोली " इसलिए मेरी बच्चियों मुझे लड़की होने का एहसास है।" "दुनिया ऊपर से चाहे कितनी भी बदल जाए पर लडकियों के लिए इसका रवेया कभी नहीं बदला है।"कहते कहते उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े मैंने पहली बार दादी को रोते देखा था। मैं और निष्ठां दीदी भी उनके गले लग कर रोने लगे। निष्ठा दी के मन में जो दादी के लिए गुस्सा था वो सब आज आंसुओ से धुल गया था।"
इतना कह कर अनन्या रुक गई वो खुद नहीं जानती थी की यह कहानी सुनाते सुनाते वो तीन बार रो चुकी है। जैसे ही उसे उसकी आँखे भीगी होने का एहसास हुआ , उसने झट से आंसू पोंछ दिए और बोली" विशाल तुम नहीं समझ पाओगे की लड़की होना क्या है?" जन्म से ही हमारे ऊपर मर्यादा और समझोते की विवशता लाद दी जाती है।" " फिर भी लडकियाँ हसते हसते कभी माँ बन, कभी पत्नी बन, कभी बेटी बन समझोते करते करते जिंदगी जीते चली जाती है।" तुम कभी नहीं समझ सकोगे विशाल की लड़की होना क्या है।" इतना कहकर अनन्या रेस्टोरेंट से बाहर चली गई और मै बैठे बैठे सोच रहा था की वह सही कह रही है हम पुरुष कभी समझ नहीं पायेंगे की लड़की होने क्या है।
आज चार साल बाद मेरे घर में एक लड़की का जन्म हुआ है और इसका नाम मैंने अनन्या ही रखा है। उस अनन्या से तो उस दिन के बाद मिलने की हिम्मत न कर सका पर इस अनन्या को बिना समझोते वाला जीवन देने का वचन देता हु।
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